ज़िंदगी कहीं ले कर जाए ये बाद कि बात है, पहले लोग यहां जीते जी मर जाते हैं, उसका क्या?- रेगिस्तान में पानी की बूंदों को ढूढ़ता एक मुसाफ़िर

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ज़िंदगी कहीं ले कर जाए ये बाद कि बात है, पहले लोग यहां जीते जी मर जाते हैं, उसका क्या?- रेगिस्तान में पानी की बूंदों को ढूढ़ता एक मुसाफ़िर



जिंदगी कहीं ले कर जाए ये बाद कि बात है,  पहले लोग यहां जीते जी मर जाते हैं, उसका क्या?

बस यही है वो कमजोर बेख़याली  जो इश्क़ करता है काली अंधेरी रातों से, घने काले बादलों से, अंधेरे कमरों से और टूटे परिंदे से जो रातो में विचरण करते हैं। जब दिल टूटता है तो आवाज़ बिल्कुल नही होती , 

क्योंकि उस वक्त की खामोशी इतनी तेज होती है कि दिल टूटने की आवाज़ पहुँच ही नही पाती .. !!!

यही हुआ जब किसी के साथ उसने जीवन आरम्भ किया मुझे बिना बताए , खैर, कुछ कहानी बता दूं उनके बारे में जिन्होंने मुझे ऐसी काली और  बेजान जीवन से अवगत करवाया, 

मेरी प्रेम कहानी एक छोटे से विद्यालय से शुरू होती है, जो मेरे शहर में ही है मेरे घर से करीब दस मिनट पैदल की दूरी पर मेरी उम्र उस वक्त करीब पंद्रह वर्ष की होगी तब मैंने वहाँ दाखिला लिया , मैं उस वक्त प्यार का क ख ग भी नही जानता था , लेकिन एकाद वर्षो में मुझे एक वर्ग की लड़की जो बहुत सुंदर, सुशील एवं शांत दिखने वाली थी, उस से लगाव हो गया, मेरा मन पढ़ाई से उतरने लगा और उसी ओर ध्यान जाने लगा कक्षा में भले शिक्षक पढा रहे हो, मेरा ध्यान तो उस पर ही रहता था ,

उसकी दीदार करना मेरी आंखों की आदत बन गई और उसकी आदत मेरी मोहब्बत। फिर क्या कुछ वर्षों बाद हमने उन्हें प्यार का प्रस्ताव दिया और उन्होंने कबुल कर लिया , यूँ लगा जैसे जीवन की निकल पड़ी , जो चाहो और मिल जाये , वो भी तब जब आपको उसके पाने का कोई उम्मीद न हो, बस ! आप उस से बिना किसी उम्मीद और स्वार्थ के प्रेम करते हो ।

बाद में एहसास हुआ, हमारी प्रेम कहानी में सिर्फ वो नाम की थी , उस कहानी में मै था और सिर्फ मैं ।मुझे शुरू में तो आभास हुआ कि वो मुझ से प्यार नही करती फिर लगा कुछ तो राब्ता है, तभी तो प्यार के प्रस्ताव को अपनाया । मैं और वो एक साथ जीवन जीने लगें ।

 पहला प्यार था क्यूँ न खुद को झोंक देते इश्क़ में , हर मौसम बस सुहावना ही लगा मुझे, गर्मी हो या ठंढ मुझे बस उसकी ही फिक्र ,मेरे लिए हर चीज़ पहली बार थी, उसके लिए नही मालूम कितनी बार  थी, मैं किसी के व्यक्तिगत मामलों में दखल देना नही चाहता था। 

खैर ... करीब दो वर्षों तक हमारा सफर सही जा रहा था, मेरे  बारहवीं बोर्ड के परीक्षा तक सब कुछ सही था , फिर.... उसका रुख मेरे तरफ से हटने लगा, मुझे यह अहसास होने लगा, जैसे उसके भीतर कोई बढ़ रहा है और मैं घट रहा हूँ , 

बाद में पता चला मेरे पहले उसका एक प्रेमी था जिसे छोड़ वो मुझे कबुल की थी । अब वो फिर से उसकी ही हो चुकी है, मैंने उसे एक दूसरे के साथ एक रेस्तरां के कमरे से निकलते देखा । मेरी आत्मा जैसे कांप रही हो, पूरे बदन में थरथराहट सी एक ज्वालामुखी धधकने लगी, हर नस फटने लगा, मुझे तो यूँ लगा, जैसे मेरी सांसे थम गई हो । उससे पूछने पर की कौन थी कहाँ गयी थी -उसके जबान से सिर्फ झूठ के अलावा कभी कुछ नही मिला मुझे

वो हर बात झूठ बोलती, जब कोई झूठ पकड़ी जाए तो एक नया झूठ बोलती मतलब हर एक झूठ के लिए दस झूठ

मेरे सब्र के बांध टूट गए,  हमारी अचानक से सारी बातें बन्द हो गई । मैं लगातार हर रात करीब हज़ारों दिनों तक रोया , बिलखा और यही वो दौर था, जहां मुझे अंधेरों से दोस्ती होने लगी थी ।

मैं एक यतीम बन चुका था, जिसे उसकी प्रेमिका मार चुकी थी ।

ये मेरी बचपन की  सबसे बड़ी भूल  थी जो मरते दम तक नही भुला पाऊंगा । खैर बुरा वक्त का भी एक वक्त होता है, वक्त के बाद उसकी घटा हट ही जाती है ।

कुछ महीने बीते खुद से लड़ाईयां लड़ी मैंने , जीवनसाथी के लालसा में मैंने अपनी जीवन गवां दिए थे ।

कुछ महीने बीते.... खबर आई उसकी सगाई हो चुकी है,किसी सरकारी विभाग में काम करने वाले एक युवक से।मुझे जो यकीन था कि कभी लौट कर आएगीं,अब वो कभी लौट कर नही आने वाली बन गयी थी। 

इस वक्त से मेरे दिमाग में अवसादों ने जन्म ले लिया, हर वो चीजें जो कुछ सालों के दौरान गुजरी वो मेरे कानों में गूँजने लगें ।  हर वक्त मैं अकेला रहने लगा, खुद ही रोने लगा, हर काम मे मन नही लगने लगा, दोस्तो से, घर से, सब से दूरियां बना ली । लोग मुझे न समझ मुझसे दूरियां बनाने लगे । मैं धीरे धीरे टूटते रहा । खुद को बहलाने के लिए भृमण का प्लान किया वहां गया, घुमा । खैर जो बीमारी आपके भीतर है वो बाहर के क्रिया कलापो से कैसे दूर होता ।

2019 की ठंढ में , माह दिसम्बर में उसकी शादी हुई , इधर मैं खुद को बांधे ,नींद के दवाईयों से चूर अर्धमृत बन पड़ा रहा । लगा जैसे जीवन का अंत आ गया हो । जबान थरथराने लगें । मरने के लाखों ख्याल आये ।

डिप्रेशन में ऐसा लगा जैसे खुद की जान ले लूँ ,

लेकिन डर था , माँ रोयगी बहुत ।यही सोच मैं बस जीवन जीने को ठान लिया,  शब्दो मे मैं बयाँ नही कर सकता उन दर्द को, उन पीड़ाओं को, उन जख्मो को जो किसी ने दिए मुझे , 

इतना जान लो मैं लिखते लिखते अभी रो पड़ा हूँ , / धड़कन तेज़ है और आंखों से नदियाँ बह रही है उसके याद में जो अब है ही नही यूँ कहें , इश्क़ दफन हो गया हज़ारों दर्द के नीचे अब बस दर्द है जो खत्म हो जाएगा जिम्मेदारियों के तले ।

डिप्रेशन के शिकार होने के बाद पता चला जिंदगी में हर चीज़ कुछ ही छन के लिए है । आपका किसी होने वाली घटनाओं के ऊपर कोई कंट्रोल नही । जो मिलना है वह मिलकर रहेगा। और जो खोना है जो खो ही जायेगा  । प्यार भी और मौत भी ।। 

 बेख्याली ;- रेगिस्तान में पानी की बूंदों को ढूढ़ता एक मुसाफ़िर ।

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