कुछ इस तरह की RAC सीट की उम्मीद में रहते है महान पुरुष। तस्वीर सिर्फ उदाहरण हेतु है और घटना से सम्बन्धित नहीं है

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कुछ इस तरह की RAC सीट की उम्मीद में रहते है महान पुरुष। तस्वीर सिर्फ उदाहरण हेतु है और घटना से सम्बन्धित नहीं है

कुछ इस तरह की RAC सीट की उम्मीद में रहते है महान पुरुष। तस्वीर सिर्फ उदाहरण हेतु है और घटना से सम्बन्धित नहीं है 

रात के 2 बज रहे होंगे, मैंने दिल्ली से मुंबई जाने वाली अपनी ट्रेन में चढ़ गया। शेयरिंग सीट पर पहले से ही एक किशोर लड़की (18-19 वर्ष ) बैठी थी। उसकी माँ थी साथ में जो अन्य सीट पर सो गई थी।अब हम दोनों सीट शेयर कर रहे थे।

मैंने नोटिस किया उसके चेहरे पर रौनक थी।

शायद ईयरफ़ोन पर अपनी पसंदीदा गाना सुन रही थी।

खिड़की से कभी शांत चांदनी रात को निहारती तो कभी आँखे बंद करके ठंडी हवा महसूस करती। काफी खुश लग रही थी।

इसी बीच एक अधेड़ व्यक्ति, जो पास के सीट पर ही बैठा था, वो हमारी सीट के पास आकर नीचे फर्श पर सो गया । यह मुझे अजीब लगा क्योकि ट्रैन का गतंव्य इतना भी दूर नहीं था कि बैठना छोड़कर फर्श पर सोया जाय। इसी बीच आँख लग गयी मेरी।

थोड़ी देर बाद आँख खुली तो वो परेशान दिख रही थी,

वो अपनी बैठने की पोजीशन बदल रही थी,

बार-बार, चेहरे पर घुटन थी।

परिस्त्थिति समझ गया मै। जो अधेड़ व्यक्ति था वो लेटने का ड्रामा कर रहा था। वो रुक-रुक कर अपने पैरो को उठाकर लड़की के जांघ को छू रहा था।

वो बोल नहीं पा रही थी कुछ,

हर बार दूर होने की कोशिश करती,

सिकुड़ कर सीट में चिपक जाना चाहती थी जहा किसी का पैर उसको न छु पाय।

बिलंब न करते हुए मैंने अधेड़ की तरफ देखते हुए कहा, "क्यों परेशान कर रहे हो इसको ?" वो कुछ बड़बड़ाया और इंकार करने लगा। मैंने कड़क आवाज में कहा, " चुपचाप इधर से निकलो नहीं तो RPF बुलाऊंगा अभी"

फिर मैंने लड़की से पूछा "क्या यह आदमी तुमको परेशान कर रहा था ?"

लड़की ने "ना" में सिर हिलाया। मुझे आश्चर्य नहीं हुआ इस बात से; छोटी उम्र में आवाज उठा पाना मुश्किल होता है।

इसी बीच वो व्यक्ति अपना बैग लेकर यहां से हट कर गेट के पास खड़ा हो गया। गुस्सा आ रहा था मुझे, गेट पर खड़े उस व्यक्ति को एकटक देख रहा था। थोड़े देर बाद उसका स्टेशन आया और वो उत्तर गया।

मैंने लड़की से बोला, "डरने का नहीं; चिल्ला देने का कोई ऐसी हरकत करे तो। माँ को जगा देने का, कोई संकोच नहीं रखना"।

लड़की ने हां कहा और खिड़की की तरफ चेहरा कर लिया।

अब मेरा स्टेशन भी आ चूका था। मैंने उसकी तरफ देखा और आखो से ही समझाने की कोशिश कि डरना मत। उसके चेहरे की हाव भाव से प्रतीत हो रहा था कि वो कहना चाह रही है "हा आगे से आवाज उठाउंगी" ।

सूर्य उदय हो चूका था लेकिन वो गहरी काली पूर्णिमा की रात उसे कई दिन तक परेशान करेगी।


:---  बदहवास

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