महावीर जयंती जैन समुदाय के द्वारा पूरे विश्व में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है। यह जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के चैत्र महीने के तेरहवें दिन को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च के अंत या अप्रैल के शुरू में होता है। इस ब्लॉग में, हम महावीर जयंती के महत्व और भारत में इसे कैसे मनाया जाता है के बारे में चर्चा करेंगे।
भगवान महावीर का जन्म:
जैन धर्म में चौथे तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म बिहार के कुंडाग्राम में वर्ष 599 ईसा पूर्व में हुआ था और उन्हें बचपन में वर्धमान कहा जाता था।। उनका जन्म बिहार के वैशाली शहर में एक राजकुमारी त्रिशला देवी से हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ थे, जो बिहार के राजा थे। जब उनकी माँ त्रिशला देवी गर्भवती थीं, तब उन्होंने सपना देखा था कि उनके गर्भ में एक सोने का अमूल्य रत्न है। 30 वर्ष की आयु में अपना राजपाट छोड़ सत्य की खोज में जंगलों की ओर चले गए और 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की, इसके बाद उन्हें ऋजुबालुका नदी के तट पर कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने समाज के सुधार और लोगों के कल्याण के लिए उपदेश दिए थे, जिन्हें अपने जीवन में उतारकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
महावीर के कई नाम:
जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों के माध्यम से वो अपने इतिहास का पता लगाते हैं। जैन धर्म के अनुसार सभी तीर्थकारों ने साधारण मनुष्य के रूप में जन्म लिया और अपनी इंद्रियां और आत्मा पर विजय प्राप्त कर वे तीर्थकर बने। जैन धर् में कुल 24 तीर्थकर हुए है। भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व) वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। महावीर को 'वर्धमान', वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है।
जैन धर्म में पांच प्रतिज्ञा का पालन:
महावीर ने निम्नलिखित पांच प्रतिज्ञा का पालन करना भी सिखाया गया है।
1) अहिंसा (गैर हत्या) - सभी जीवन (अहिंसा) को बचाने के लिए।
2) सूनृता (सच्चा भाषण) - सच बोलने के लिए।
3) अस्तेय (गैर चोरी) - चोरी नहीं करने के लिए।
4) ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य) - व्यभिचार न करने के लिए।
5) अपरिग्रह (गैर कब्जा) - एक की संपत्ति सीमित करने के लिए।
भगवान महावीर के उपदेश :
भगवान महावीर के द्वारा विभिन्न विषयों पर दिए गए ज्ञान और संदेशों को हम महावीर के उपदेश के नाम से जानते हैं। उन्होंने निम्न विषयों पर उपदेश दिए।
- सत्य
- अहिंसा
- अपरिगृह
- ब्रह्मचर्य
- क्षमा
- आत्मा
- कर्म
- कर्मों का फल
- धर्म-संयम, तप
- चोरी मत करो
- ब्राह्मण और भिक्षु
- प्रमाद मत करो
- कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया।
0 Comments