द कश्मीर फाइल्स ही क्यो भारत विभाजन पर भी बने फ़िल्म

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द कश्मीर फाइल्स ही क्यो भारत विभाजन पर भी बने फ़िल्म

 द कश्मीर फाइल्स ही क्यो भारत विभाजन पर भी बने फ़िल्म

द कश्मीर फाइल्स फ़िल्म बॉक्स आफिस पर धमाल मचाये हुए है । मात्र तीन दिन के भीतर ही इसने 27 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर ली है । जबकि इस फ़िल्म के निर्माण में मात्र 15 करोड़ रुपये ही खर्च हए है। पीएम मोदी ने भी इस फ़िल्म की सराहना की है। कश्मीरी पीड़ितों पर इस तरह की फ़िल्म बहुत पहले बन जानी चाहिए थी लेकिन शायद राजनैतिक प्रतिकूलता के चलते किसी ने जोखिम नही लिया । 

विवेक अग्निहोत्री की द कश्मीर फाइल्स में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को दिखाया गया है। इस फिल्म ने फिलहाल ऐसे कई सेट स्टैंडर्ड को तोड़ रखा है जो किसी फिल्म को लेकर माने जाते हैं। जैसे अमूमन किसी फिल्म की चर्चा उसमें काम करने वाले बड़े-बड़े सितारों के नाम पर होती है या फिर फिल्म रिलीज के पहले फिल्म का कोई गाना हिट हो जाता है तो होती है। लेकिन द कश्मीर फाइल्स के साथ सबसे खास बात ये है कि  इस फिल्म को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा किसी बड़े सितारे की नहीं बल्कि फिल्म डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री की हो रही है। हालांकि इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती और दर्शन कुमार जैसे बड़े अभिनेताओं ने काम किया है। इसकी एक वजह यह भी है कि इस फिल्म के प्रमोशन की पूरी जिम्मेदारी डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री और अभिनेता अनुपम खेर  ने अपने कंधों पर ले रखी है। 

इस फिल्म को बनाने में लगभग 700 कश्मीरी  पीड़ितो  से जानकारी कर 5000 घंटे के रिसर्च की गई । 15 हजार पेज के डॉक्यूमेंट इकट्ठा किए गए । उन कश्मीरी पंडितों का इंटरव्यू भी किया गया  जो असल में उन दिनों कश्मीर में ही मौजूद थे। विवेक बताते हैं कि वह और उनकी पत्नी पल्लवी जोशी ने असली पीड़ित कश्मीरी पंडितों से मिलने के लिए दुनिया भर के कई देशों और भारत के कई शहरों के चक्कर लगाए और तब कहीं कश्मीरी पंडितों का इंटरव्यू रिकॉर्ड कर पाए।  

इस फिल्म को बनाने में 4 साल का लंबा वक्त लगा। कुछ आलोचनाओं के बीच फ़िल्म की लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है । फ़िल्म को दिखाने  का काम गिफ्ट के रूप में किया जा रहा है। तमाम दर्शक थियेटर में फ़िल्म की बुकिंग अपने मित्रों , रिश्तेदारों और परिजनों को गिफ्ट के रूप में कर रहे है। कर्नाटक सरकार ने तो अपने सभी विधायकों को यह फ़िल्म दिखाने के लिये पूरा थियेटर का एक शो बुक किया है। यूपी, एमपी, गोआ , गुजरात, कर्नाटक, हिमांचल , हरियाणा सहित सात राज्यों में यह फ़िल्म टैक्स फ्री की जा चुकी है । 

फ़िल्म के प्रभाव का अंदाजा इस कदर दर्शकों पर है कि शायद ही कोई दर्शक होगा जिसकी फ़िल्म देखने के बाद उसकी आंखें नम न हुई हो। इस तरह के कंटेंट पर  फ़िल्म  बनी बहुत अच्छी बात है । लेकिन कश्मीर और कश्मीरी पंडितों की समस्या का मूल कारण भारत का विभाजन है। 

कश्मीर में आतंकवाद में अब तक हजारों लोग मारे गए है । जिसमें हिंदुओं और सिखों की संख्या बहुत ज्यादा है। वहां के मुस्लिम भी मारे गए है । 

आतंकवाद के कारण सैकड़ो की संख्या में कश्मीरी पंडित भी मारे गए लगभग दो लाख कश्मीरी पंडितों को निर्वासित भी होना पड़ा । परन्तु यदि हम भारत के विभाजन की बात करें तो लगभग 1946,47,48 में  ढाई करोड़ लोगों को अपनी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा था । खुद भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने विभाजन के दौरान विभाजन में मारे गए लोगों की संख्या 13 लाख बताई है। आंकड़े बताते है कि इस विभीषिका में लगभग 50 लोग घायल हुए थे। लगभग एक लाख महिलाओं के साथ या तो बलात्कार किया गया था या फिर उनका अपहरण कर लिया गया था। जिनमें ज्यादा संख्या सिखों औऱ हिंदुओ की महिलाओं की थी। तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारी मोसले ने पाकिस्तान से आने वाले 73 मील लंबे काफिले का वर्णन कुछ इस तरह किया था-" लोग लंबे लंबे काफिले में इसलिए चलते थे उन्हें लगता था कि वे सुरक्षित गंतव्य पर पहुंच जाएंगे । 

इसके बावजूद भी दंगाई महिलाओं , युवतियों , सामानों को लूट लेते थे फिर भी काफिले रुकते नही थे बेबस लोग सुरक्षा के चलते यह सब सहने को मजबूर होते लेकिन चलते ही जाते थे।" पाकिस्तान में सबसे ज्यादा हिंदुओ और सिखों का नरसंहार शेखूपुरा जिले में हुआ था । मात्र एक सप्ताह में ही हजारों हिंदुओ और सिखों का कत्ल कर दिया गया था। जैसे तैसे बचे हुए लोगों ने पलायन किया । यह सब बलूच फौज और पुलिस की मदत से किया गया था। 

ज्ञात इतिहास में इतने कम दिनों में दुनिया की कोई भी इतनी बड़ी मानवी त्रासदी नही हुई जितनी की भारत के विभाजन के दौरान हुई । विभाजन में सबसे ज्यादा प्रताड़ना हिन्दू समाज के दलित वर्ग की हुई क्योकि अज्ञानता, निर्धनता के कारण ज्यादातर ये पाकिस्तान से आ ही नहीं सके। जिसका बखान आंबेडकर और गांधी ने खुलकर किया था तथा पाकिस्तान से मार्मिक अपील भी की थी यह अलग बात है कि पाकिस्तान पर इस  अपील का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। 

विभाजन की विभीषिका पर 'फ्रीडम मिड नाइट चिल्ड्रन', ए एन वाली की 'नाउ इट कैन बी टोल्ड' गुरुदत्त की विश्वाघात और देश की हत्या सहित दर्जनों किताबें लिखी जा चुकी है। लेकिन दो तीन घन्टे की फ़िल्म में दर्शकों जितना कंटेंट आसानी से समझ में आ जाता है उतना कई किताबों के पढ़ने से बड़ी मुश्किल से आता है। इसलिये इस पर अवश्य फ़िल्म बननी चाहिए। 

भारत के दुखद विभाजन को यादगार बनाने के लिये भारत सरकार ने  हर साल 14 अगस्त को अखंड दिवस मनाने की घोषणा बीते 14 अगस्त को ही कर दी थी । फिल्में किसी घटना को यादगार बनाने का सबसे अच्छा माध्यम होतीं है। इसलिये कश्मीर समस्या की असली वजह भारत विभाजन पर तो अवश्य ही फ़िल्म बननी ही चाहिए ।

लेखक - मुनीष त्रिपाठी,पत्रकार, इतिहासकार और साहित्यकार है । हाल ही में उन्हें उनकी पुस्तक' विभाजन की त्रासदी'के लिये यूपी हिंदी संस्थान द्वारा प्रतिष्टित "केएम मुंशी" पुरस्कार  दिया गया है। इसके अलावा औरैया जनपद प्रशासन ने उन्हें पत्रकारिता और साहित्य में 'औरैया रत्न' से विभूषित किया है।

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