अपनी अंतिम सांस तक भारत माता की आन और तिरंगे की शान को बरकरार रखने वाले करगिल युद्ध के अमर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि | #KargilVijayDiwas

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अपनी अंतिम सांस तक भारत माता की आन और तिरंगे की शान को बरकरार रखने वाले करगिल युद्ध के अमर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि | #KargilVijayDiwas

कल "तेजस्वी सूर्या" ने विजय दिवस पर लाल चौक पर तिरंगा फहराया है....

लेकिन क्या आप जानते हैं कि कश्मीर में एक वक्त ऐसा भी था जब लाल चौक पर देश का तिरंगा झंडा फहराना मुश्किल था। आतंकी यहां तिरंगा फहराने वालों को जान से मारने की धमकी देते थे। 


श्रीनगर के लाल चौक का देश में अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व है। यह वह स्थान था, जहां भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने साल 1948 में भारत द्वारा इस क्षेत्र पर कब्जा करने के पाकिस्तान के प्रयास को नाकाम करने और हराने के बाद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। 1948 के बाद लाल चौक पर पहली बार 26 जनवरी 1992 को बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में तिरंगा फहराया गया था। इसके लिए दिसंबर 1991 में कन्याकुमारी से एकता यात्रा की शुरुआत की गई थी, जो कई राज्यों से होते हुए कश्मीर पहुंची थी। मुरली मनोहर जोशी के साथ उस वक्त नरेंद्र मोदी भी थे। 

मोदी उस वक्त जोशी की उस टीम के सदस्य थे जो घनघोर आतंकवाद के उस दौर में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने पहुंची थी। स्थिति अत्यंत तनावपूर्ण हो गई थी। तब कश्मीर में स्थिति विस्फोटक थी। आतंकी और अलगाववादियों ने खुलेआम एलान किया था कि तिरंगा नहीं फहराने दिया जाएगा। भाजपा की एकता यात्रा पूरी होने से पहले ही आतंकियों ने पुलिस मुख्यालय मे ग्रेनेड धमाका किया था, जिसमें तत्कालीन पुलिस महानिदेशक जेएन सक्सेना जख्मी हुए थे। लालचौक पूरी तरह से युद्घक्षेत्र बना हुआ था। चारों तरफ सिर्फ सुरक्षाकर्मी ही थे। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच लगभग 15 मिनट में ही मुरली मनोहर जोशी व उनकी टीम के सदस्य के रूप में शामिल नरेंद्र मोदी व अन्य ने तिरंगा फहराया। 

इस दौरान आतंकियों ने रॉकेट भी दागे जो निशाने पर नहीं लगे। इसके बाद सभी नेता सुरक्षित वापस लौट गए थे। इस यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी सिर्फ एक साधारण पार्टी कार्यकर्ता नहीं बल्कि यात्रा के संचालन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभा रहे थे।

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