जिंदगी में हाथ छुड़ा कर जाने वाले लौटकर नहीं आते.. अब जब मैं बंद आंखो से देखता हूँ उन बीत चुके कल की हकीकत को.. तेरा रास्ता देखते, तब आंखें थकने लगती है।

Ticker

6/recent/ticker-posts

जिंदगी में हाथ छुड़ा कर जाने वाले लौटकर नहीं आते.. अब जब मैं बंद आंखो से देखता हूँ उन बीत चुके कल की हकीकत को.. तेरा रास्ता देखते, तब आंखें थकने लगती है।

तुमको याद करने के लिए भी एक समय सेट होना चाहिए, ताकि समय समाप्त हो तो याद भी समाप्त हो जाए। आखिर कब तक मैं तुम्हारे याद  में अपना वक्त बर्बाद करता रहुंगा, मेरा भी तो वक्त कीमती है न..??

इसलिए तुम्हारी याद का कोई समय  निर्धारित होना बहुत जरूरी है...  हम  ये जानते हुए भी कि स्वेच्छा से  जाने वाला व्यक्ति लौटकर नहीं आता कभी परन्तु हम फिर भी उसकी प्रतीक्षा में अपना समस्त जीवन किसी तपस्या की भाँति विरह के अग्निकुण्ड में धकेलकर अपना समूचा जीवन समाप्त करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कब तलक आखिर ये जिंदगी तड़पाएगी मुझे, टूटी फूटी ही कम से एक ख्वाहिश तो मेरी भी पूरी होनी ही चाहिए। 

ऐसे आजीवन किसी को याद बनाकर रखना कहां तक उचित है। ये तो  ठीक उसी प्रकार से है जिस प्रकार से घाव की गहराई जानते हुए भी उसका उपचार न करवाना, और वही घांव बाद में जीवन मरण का कारण बन जाता है। कहीं तुम्हारा इंतज़ार मेरे अंत का कारण न बन जाए


सब कहते हैं..

जिंदगी में हाथ छुड़ा कर जाने वाले लौटकर नहीं आते.. अब जब मैं बंद आंखो से  देखता हूँ उन बीत चुके कल की हकीकत को.. तेरा रास्ता देखते, तब आंखें थकने लगती है।

दरअसल हम पुरूषों का प्रेम जटिल होता है, क्योंकि हम पुरूष कभी अपनी पूरी भावनाओं को ब्यक्त नहीं कर पाते,घुटते रहते हैं अंदर ही अंदर, हम कोसते हैं अपने आपको, हमारा पुरुष होना ही हमें रोके रखता है बिखरने से पर सत्य तो ये भी कि हम पुरूषों को भी दर्द होता है, परिस्थितियों से हार कर हमारा भी मन होता है रोने का, हमारा भी मन होता है किसी के कंधे पर सर रख  अपने सारे दुख तकलीफ बांट लेने का पर सबकुछ जोड़ के रखने के लिए अमूक बन अपने अंदर का सबकुछ टूटते हुए देखते रहते हैं।

इसे भी पढ़े :  सबकुछ अच्छा बुरा सजीव निर्जीव, इश्क़ नफरत सब पर लिखूगां - बनारसी

Post a Comment

0 Comments